सोमवार, 18 अक्तूबर 2010
AAJ KA SUNDER DIN
शनिवार, 9 अक्तूबर 2010
Jai ho Jai ho Chacha ki phir Wapsi
किसी ने कुछ लिखा है में आप तक पंहुचा रहा हु
एक दिन, एक पड़ोस का छोरा,
मेरे तै आके बोल्या :
"चाचा जी, अपनी इस्त्री दे दयो"
मैं चुप्प, वो फेर कहन लगाया :
"चाचा जी, अपनी इस्त्री दे दयो नै"
जब उसने यो कही दुबारा,
मन्ने अपनी बीरबानी की तरफ करा इशारा :
"ले जा भाई, यो बैठी"
छोरा कुछ शरमाया, कुछ मुस्काया,
फिर कहन लगाया :
"नहीं चाचा जी, वो कपडा आली"
मैं बोल्या, "अरे तन्ने दिखे कोन्य
या कपडा मैं ही तो बैठी से"
वो छोरा फेर कहन लगाया :
"चाचा जी, आप तै मज़ाक करो सो
मन्ने तो वो कर्रेंट वाली चैहये"
मैं बोल्या, "अरे बावली औलाद,
तू हाथ लगाया के तो देख
या कर्रेंट भी मारे से"
राहुल टोकस
MERA PYAAR
भइया सीधी बात नो बकवास अपना प्यार पेस्सा और इजत अब भईया जी दोनों चीजे तो मिल नहीं सकती या तो पहले पेस्सा कमाओ फिर इजत या फिर पहले इजत और बाद में पेस्सा ये रुले मेरे अकेल पर नहीं लागू होता आप सब पर भी होता है वो बात अलग है की कोई मानता है कोई नहीं मानता
यार इतना धियान देकर मत पड़ो में तो लिख लिख कर ही बोर हो गया आप पड़ कर नहीं हुए चेलो एक चुटकुला हो जाए ऊऊओह्ह्हीए हा हा आहा हा अह हा हा हा आहा ये चुटकुला नहीं है चुटकुले के बात का मजा है पता नहीं पड़ने के बात मजा आये या न आये इसलिए पहले मजे लो
मरते समय पति ने अपने पत्नी को सब कुछ सच बताना चाहा । उस ने कहा " मै तुम्हे जीवन भर धोखा देता रहा। सच तो यह है कि दर्जनो औरतों से मेरे नाजायज संबंध थे।"
पत्नी बोली, "मै भी सच बताना चाहूँगी । तुम बीमारी से नही मर रहे मैने तुम्हे धीरे-धीरे असर करने वाला जहर दिया है और ये बेच्चे भी मुझे नहीं पता किस किस के है मगर आप के नहीं है मुझे मा....... माफी मांगने से पहले ही मर गये ओह्ह... मर तो गया है अब इजत भी क्या देनी साले रास्ते के काटे।"
तो जी ये है आज की भारतीय नारी आप की और हेमारी प्यारी
बुधवार, 15 सितंबर 2010
hi
यारो हम सब कुछ न कुछ हासिल करना चाहते है पर कुछ ही कर पाते है एसा क्यों होता है में भी अपनी लाइफ में कुछ हासिल करना चाहता हु और कोशिश कर रहा हु देखो कब सफ़ल होते है कुछ नै काहानिया तो है बुत टाइम नहीं ट्रेन निकल जाएगी टिक है फिरभी ट्रेनों के बारे में सुनिए
साली ७० क. म. का रास्ता ३ घंटे में भी पूरा नहीं कर पाती मै शाम को ६.१५ मिनट पर ट्रेन में बता हूँ और रात को ९.३० से १० बजे तक घर में घुसता हु रोज मैडम के दाइलोग्स सुनता हु बेटी सो जाती है क्या करे लाइफ इस हेल इन ट्रेन
शनिवार, 3 जुलाई 2010
Welcome back to me plzzzzzzzzzz yaarrrrrrr
चलो क्या आप को पता है वो १० किलो रस्गुले खाजाते है अरे आप को केसे पता चलेगा मैंने तो बताया ही नहीं यार आप रस्गुले भेजो अपने आप पता चल जायेगा बिहारी बाबू बहुत कमाल के है हमेशा एक न एक कहानी होती है उनके पास और दुनिया की सारी घटनाएं उनके साथ ही घटित होती है चलो वो अब मेरे पास आचुके है और देख रहे है की मै क्या लिख रहा हूँ उनके बारे मै मेरा स्वभाव ही ऐसा है मै बाहुत ही शरीफ और सीधा इंसान हूँ बस हफ्ते मै पांच दिन बीयर पिता हूँ साथ मै ताश भी खेलही लेता हूँ चलो छोड़ो क्या हुआ कुआँ नहीं करता सब करते है मै मस्त हूँ ना प्रशन भी खुद करता ही और उत्तर भी खुद ही देता हूँ वाह वाह वाह क्या बात है
काहनी अगली बार सुनाऊंगा sms bhete raha kro yaar kya hua esi bhi kya narajgi hai kam se kam e-mail to kro koi to kro wo nahi jo tum soch rehe ho achi e-mail kro ok
byeeeeeeeee
शनिवार, 20 मार्च 2010
एक मेल जो दिल हिला दे
शुक्रवार, 12 मार्च 2010
लाइफ इस आउट ऑफ़ कण्ट्रोल
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010
चाचा जी की कविता
एक थी कुतिया साली पर थी वो काली,
थी वो खलनाइका फिर केसे मानु में उसको भोलिबाहली,
साली मरी सारी चीज कियो है काली,
काली जर्सी, कला मफलर, काले गुलाब और कुतिया भी काली,
काली काली काली हर चीज काली,
पैंट काली शर्ट काली सूट काला साली जुराब भी काली,
काली काली काली हर चीज काली,
काली साइकल, काले बाल साली मुछ भी काली,
बालो के रंग कर साला वो भी काला,
काली काली काली हर चीज काली,
कुतिया काली साली कुतिया भाग कर और होगेई काली,
सोमवार, 1 फ़रवरी 2010
3. chacha ji ki wapsi
मंगलवार, 19 जनवरी 2010
चाचा और चाचा का रंगीला अंदाज
शनिवार, 16 जनवरी 2010
२. चाचा जी और काले गुलाब के पौधे
तो आगे बढ़े उस मन्दिर की देखरेख चाचा जी ही करते है पर एक दिन चाचा जी को मन्दिर के बगीचे के लिए कुछ गुलाब के पौधो की जेरूर्त थी चाचा जी ने गुलाब के पौधो की खोज का अभियान आरम्भ किया चाचा जी की आदत है की वो छोटी छोटी बातो को दिल से लेगा लेते है और टेंशन लेलेते है अब चाचा जी को कई दिनों की खोज के बाद भी पौधे नहीं मिले चाचा जी की पुरानी आदत ट्रेन में पूछने लेगे गुलाब के पौधे मिल जायंगे वो भी किस्से भला कौन मुझसे और मेरी आदत की चाचा जी कुछ बोले मुझे इंतजार रहता है मैंने कहा पौधे किया ट्रेन में खिले है बस चाचा को मारने का मोका मिल गया और एक थपड मेरे गाल पर अब आप देखिये चाचा जी गुलाब भी कौन से ढूंडरहे थे कोई तो सफेद लाल पीले धुन्ड़ता है वो काले गुलाब का पौधा ढूंड रहे थे मेने खा की आप को काली चीजे ही क्यों पसंद है सारी काली चीजे ही लेते हो कुतिया ली वो भी काली गुलाब चाहिए वो भी काले रात को कोई काली वस्तु गम हो गयी तो टोर्च भी काली मांगना वा मेरे काले चाचा और देखिये चाचा ने नए पुराने आते जाते सब को कह दिया पर सब का एक ही जवाब १०० मैं से ११० बेईमान पर चाचा सब का मेहमान
शुक्रवार, 8 जनवरी 2010
- मै और चाचा हम दोनों ट्रेन से आते है हमारे चाचा जी बड़े ही रंगीले है रंगीले का mtlab क्रिपिया gelet न ले आप की इति कृपा होगी
चाचा जी की उम्र ४० से ४२ वेर्ष होगी lekinचाचा जी के दोस्त सारे १८ से ३० वेर्ष के है कोई एक या दो ही उनकी उम्र के है चाचा जी अपने आप मैं एक कोमेडियन है अगर कोई उनसे बात न केरे तो वो बेचेन हो जाते है चाचा जी का जनम एक जनवरी को हुवा था सन का तो मुझे भी नहीं पता है पर aaप लोगो को या मुझे सन जान कर क्या करना है क्यों सही कहा ना चाचा जी दीखने मैं थोड़े सावले थोड़े क्या पुरे ही तो सावले है जब भी मैं चाचा को छेड़ता हूँ (नोट :- कृप्या छेड़ने का गलत मतलब ना निकले नहीं तो चाचा जी मुझे पीर से पीटेंगे ) उनकी एक ही प्रतिक्रिया होती है ले लेले जेसे तो सोना चांदी बात रहे हो चाचा जी अपने आप मैं दुनिया के ९ अजूबे है उन्हें कोई लडकी दिख जाय तो वो एसे हो जाते है जसे किसी ने उनके शरीर मैं कर्रेंट छोड़ दिया हो कान बंदर की तरह खड़े हो जाते है और मुह को एसे बाहर की तरफ करते है जसे बंदर करता है । जब हेमने चाचा को चाचा कहेना शुरू किया तो पूरी ट्रेन मैं वो चाचा के नाम से प्रसिद्ध हो गए । तो बोलो चाचा ट्रेन वाले की क्या करना है जय बोल कर चेले आगे । आब चाचा की कथाये आरम्भ की जाय
प्रथम कथा आरम्भ करने से पहले चाचा को याद करे
१ चाचा की काली कुतिया :
हमारे चाचा जी (नराज ना हो आप के भी चाचा है ) ने एक छोटी कुतिया पाली थी वो काली थोड़ी चाचा जेसी (एरे शक्ल से नहीं हेर्केतो से ) क्यों ? यह जानने के कथा आरम्भ करते है । चाचा जी के घर के पास एक नया मन्दिर बन रहा है चाचा जी बताते है वो मन्दिर के कर्ता अथवा संचालक कहते है चलो होंगे हमे क्या करना है हम तो मजे लेने वालो में से है चाचा की हर बात मेंएक कहानी होती है चाचा जी हर रविवार को मन्दिर मैं होते है अगर चाचा ने आप से रविवार को मिलने का वडा किया है तो आप भूल जावो चाचा नहीं आयंगे कियो की गॉव की औरतो का पानी वो ही बेर्वाते है और अगर बारिश हो जाए तो अपने कमरे मैं से उनको देखते है । एक बार चाचा जी ने एक छोटी पर खोटी काली कुतिया पाली नाम कर्ण तो अभी किया नहीं था की एक दुर्घटना घटी साली कुती और किसी के साथ भाग गयी चाचा ने उसे इसलिए पाला था की कोई नहीं दिखेगी तो कुती से काम चेललेगे पर दिल टूटा कुती को और कोई ले भागा कई दिन तो खाना भी नहीं भाया कियोकी कुती ने साथ नहीं निभाया । चाचा ने ट्रेन मैं भी पुछा पर कुती का पता आज तक नहीं चला चाचा का दिल है नाजुक पर कुती को कंहा परवा वो तो फिल्मो की ख्ल्नाइका निकली धोका दे क्र भाग गई क्या करे जात ही इसी है चलो चाचा को समझाया सदमे से भाहर लाया मगर चाचा को अभी भी चेन ना आया काली सुंदर कुती को जो गवाया एब चाचा जी टीक है कभी कभी याद आती है तो शान्ति से ट्रेन मैं बेठ जाती है फिर वो की देर किसी से बाते नहीं करते पर कोई नया वेयक्ति बात करे तो जेवाब जरुर देते है चाचा हो जेसे भी उनके बिना ट्रेन मैं टाइम पास नहीं होता चाचा को जेसे पता चला की मैंने उनके बारे में लिखना आरम्भ किया है तो उन्होंने दो मेरे कान के निचे दिए पर मैं भी धीट हूँ बाज नहीं आऊंगा क्यों की उनसे अछी कानी कोई नहीं दे सकता ।