बुधवार, 23 मार्च 2011

नो प्रोब्लम

जब आप किसी को कोई छोटा मोटा काम कहते है और अगर वो उस काम को कर सकता है तो बडे हक से कहता है की नो प्रोब्लम और बडा गर्व मन्ता है परन्तु लेकिन मगर कभी कभी कुछ लोग एसे भी होते है की बस का कुछ होता नहि फिर भी बोलते है कि नो प्रोब्लम । 
     दरसल एसे कुछ लोगो को ब्लकी काफी लोगो को मै जानता हुं जो चोडे हो कर बोल तो देते है की नो प्रोब्लम और जरुरत पडती है तो सामने वाले का जब तक चिरहरण ना हो जाये उन के दर्शन दुर्लभ हो जाते है। और बाद मै भी बोलते है नो प्रोब्लम एबे प्रोब्लम तुझे थोडी ना हुई है जिस के साथ हुई है उसी को पता है ना । 
 लोगो ने जब से अंग्रेजी के दो चार शब्द सीखे है अपने आप को बील क्लीन्ट्न से कम नही समझते है । वेसे कभी ना कभी एक ना एक  व्यक्ति एसा सब को मिल जाता है मै एसे व्यक्ति को बोलता हुं घोडु 

आप लोगो को भी कभी ना कभी कोई एसा मिला होगा  

शनिवार, 12 मार्च 2011

चाचा का दुख और हमारा बजट

नम्स्कार,
                 आज शुक्रवार है और आज सुबह जब मै सिरसा एक्सप्रस मे बेटा था और ट्रेन दिल्हि के सदर बाजार के स्टेशन पर रुकी तभी मुझे हमारे प्रय चाचा जी नजर आए और मेने बीना देर करे उनेह अवाज लगाइ चाचा जी राम राम चाचा जी ने अपने काले रन्ग का अभी भी त्याग नही करा है उनोहने काली जरसी और काली पेन्ट पहन रखी थी। दरसल मै उन्हे उस स्टेशन पर देख कर हेरान था कियो की काफी टाइम के बाद दीखे थे ।

               मेने चाचा जी से पुछा की आज यहा केसे और आज लेडीज ड्ब्बे के आगे नही रुके क्या बात कोइ परेशानी है क्या। चाचा जी ने मेरी राम राम का उत्तर दिया और मुह उपर करके और अपने काले होटो को खोलते हुवे बोले की मेरी काली कुतीया जो गुम होगी थी वो वापस मील गई थी मेने चाचा जी को रोकते हुए उनेह बेधाइ दी चाचा जी काले से लाल होते हुवे बोले वो साली धोखेबाज काली कुत्ती फिर भाग गई।
                      चाचा जी का दुख मुझसे देखा नही  गया और मै अपना मुह निचे कर के हसने लेगा वेसे मुझे अभी तक पता नही चला है की साली वापस केसे आई ये खबर मै पता कर के ही दम लुन्गा।

इसी बीच मेने चाचा जी से अपने बजट के बारे मे पुछा की चाचा जी केसा लगा हमारा बजट और क्या फायदा हुआ आप को । चाचा जी तुरत मेरी कालर पकडी और कहा की कुछ भी हो जाए और चाहे कितने भी मेगां हो जाये कपडा मै काला रंग पहना नही छोडुंगा और फाल्तु मेरा टाईम खराब मत कर मेरी काली कुत्तीया मिले तो फोन कर देना मेरे फोन मै बेलेन्स नही है चल निकल नटखट

गुरुवार, 3 मार्च 2011

मूवी २०११ नटखट छोरा


मूवी २०११ नटखट छोरा 

शुरवात बजट से

२०११ के बजट के अनुसार  आज टी.वी. खरिदो मोबाइल खरीदो कपीयुटर खरीदो सस्ते और अपनी बेटी के देहज में दो पर शादी के समय शर्त रखो की शादी जसे मर्जी करो पर दहेज ही मन्गो शादी के समय हम केवल देहज ही देंगे और बरातियो का स्वागत भी करेंगे खूब धूम धाम से पर खाना नहीं खीलायेन्गे कारण जी टी.वी के पैसे है मोबाइल के पैसे है लैपटॉप भी देंगे पर खाना आप अपने पैसो से ढाबे पर खालेना उस्के  पैसे नहीं है और एक शर्त है की कपड़े हम केवल पटरी बाज़ार से खरीद के देंगे हम ब्रांडेड चीजों में वीशवास नहीं रखते आखिर हमारी भी कोई इज्जत है ये तो हुइ लड़की वालो की शर्ते

          अब सुनिए लड़के वालो की शर्ते जी हम लड़की को अपनी बेटी से ज्यादा प्यार करेंगे अपने हाथो पर रखेंगे पर जी इसे नाश्ते में मोबाइल ही मिलेगा लंच और डिनर मे आइस मतलब बर्फ के साथ हैंड पंप का पानी खा और पीना पडेगा और सुनिए की शादी के बाद हनीमून के लिए हम इसे अपने खान दानी फिर्ज़ में ही भेजेंगे बिमारी में लोकल कम्पोडर से बढ़िया इलाज़ करवा देंगे और बचे होने पर हम बचो को केवल सरकारी स्कूल के पेड़ के निचे मोबाइल लेकर भेजेंगे पर चिंता न करे हमारे पास अब कार भी है पर वो केवल धके से ही चलती है अगर पेट्रोल डलवा दो तो खराब हो जाती है 

          अब गाने की बारी सुनो सुनो एक शादी सुनो एक लड़के की एक लड़की की और एक बजेट की तुम एक शादी सुनो मोबाइल है फिर्ज़ है कार है पर सरकार खाना नहीं है सुनो सुनो एक शादी सुनो
एक लड़का था  वो मिडल क्लास का एक लड़की थी मिडल  की मोबाइल खाते थे और फिर्ज़ से आइस पिटे थे पर रोटी मिलती नहीं थे एक घर था बिना फर्िनचर का गैस भी नहीं आती थी सुनो सुनो एक शादी सुनो........

अभी पिचर बाकी है बाबु मुशाये.......................................... 

नम्सकार

आप सोच रहे होगे की मे इस साप की तरह भ्यान्क दीखता होन्गा पर एसा नहि है मे एसा दीखता नहि हुं पर कभी कभी बन जाता हुं  अपने आप को नुक्सान पहुचाने के लिये मेरा नाम नटखट हैं ये नाम तो कालपनीक है पर मै इसी नाम से लिखना पसन्द करुन्गा कियोकी ये मुझे पसन्द हैं।

मुझे बोल्ग लिखने की प्रन्ना श्री अन्तर सोहील जी ने दी है मे उनका अभारी हू की उनहोने मुझे इस कुए मे कुदने के लिये काहा मुझे अरम्भ मे तो कम मजा आया पर अब मे इसका पुर्ण आन्नद उटाने की कोशिस कर राहा हु मे अपने बरे मे लिखना पसन्द करता हु पर आज एक माहान पुरुष के बारे मे श्री अन्तर जी दरसल हम दोनो एक ही व्यवसाय के दो अलग अलग किडे है वो अलग फल खाते है मै अलग फल खाता हुं वो मेरे प्रिय मित्र तो है पर उनकी खास बात है की वो बातो बातो मे दुसरे का चीरहरण करने लगते है ये ही कला उनकी खुबी है इस के अलावा इन्मे और भी केला मोजुद है  और एक खास बात वो भी मेरि तरह चाचा के पुराने आशिक है चाचा काले रन्ग वाला बलकी ये जनाब तो और दो कदम आगे है चाचा और अन्तर जी एक दुसरे के पुराने पडोसी है मुझे तो एसा लगता है की दोनो एक दुसरे को अपने अपने केबीन की खिड्की से देख कर मुस्कराते होगे और शर्मा कर अपने अपने शर्ट मे मुहु डाल लेते होन्गे और फिर से नजरे उटा कर एक दुसरे को प्यार भरी नीगाहो से ताकते होगे । चलो दोनो जेसे है बहुत अच्छे है आखीर एक लीखने के लीये प्रेन्ना देता है तो दुसरा मेरी काहनीयो को प्रेरणा प्रदान करता है।